दो मरजीवा-
एककी सब ठोंकते पीठ ,
दूसरेको देखते ही हो जाते हैं कुढ़.
दो मरजीवा,
एक जाता है समन्दरके किनारे,
दूसरा गटरगंगाके तट.
एक पहनता है फूलप्रूफ इलेक्टोनिक बख्तर ,
दूसरा ओढता है शराबकी बदबूके वस्त्र.
दो मरजीवा,
एक जाता है अटल अन्धकारकी गुहामें ,
दूसरा खूंद्ता है नरक, ठोस विष्टाके स्तर.
एक ले आता है शुभ्र,श्वेत मोटी अनमोल,
दूसरा पाता है, सभ्यता, तेरी विरूप विष्टा
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