Thursday, December 31, 2015

मानवभक्षी नगर


मानवभक्षी इस नगरकी
नागचूड है राक्षसी
तोड़ अगर तोड़ सके  तो
पोल खोल अगर खोल सके  तो .
लेकिन उससे पहले चेक कर लेना
अपने आपको
तुम नहीँ हो
गुब्बारा हवासे भरा
पिन लगते ही टेन्शनकी
बीदक जाय
चीखने लगे
बिना सोचे अग्निस्नान कर लेते
मानवप्राणीकी तरह .
असम्बद्ध प्रलाप
सहमे  हुए वाणीविलास
डरे हुए अंग चेष्टायें
काफी कुछ जाएगा धस्मस्ती बाढ़की तरह
तैर
अगर तैर सके तो.
सतह तक पहुचना
हो सके तो 
गोता लगाए बिना   
मोटी हाथ लगेगा
मानवभक्षी इस नगरकी
नागचूड है राक्षसी
तोड़ अगर तोड़ सकता है तो
पोल खोल अगर खोल सकता है तो .
मानवभक्षी
इस नगरकी
नागचूड है राक्षसी
उसकी जंजीरें घद्नेवालेके पास
सिर्फ्फ़ मामूली इन्द्रियाँ ही  नहीं हैं.
उनके पास हैं 
जहरीली विचारधारायें
तक्वाद्का जहर पिलाकर
अंग शिथिल कर देते हैं
बादमें संतुलन गंवाते शिकारकी
काट देते हैं क्रूरतासे
पंख..
उनके पास हैं
जालिम जासूस .
पिलाकर नफरतका जहर   
वे उकसाते  हैं इन्सानको.   
बादमें एकाकी
असुरक्षितता महसूस करते
अकेले इंसान पर
मारते हैं खूनी हथौड़ा.
मसल डालते हैं
उसका छोटा दिमाग,चेतातन्त्र
और तमाम संवेदनाएँ.
उनके पास हैं
प्रगतीशील बुद्धिजीवी .
शोषणकी  आंतमें मौजसे पनपते
बेक्टेरीया जैसे .
मूडी, शोषण,दमन, नागरिक अधिकार
उनके  शोधके विषय हैं अनेक.
रातको गढ़ते हैं
डेवलपमेन्टल स्कीम 
शासकीय,
दिनको डाइनिंग टेबुल पर 
चैनसे आरोगते हैं 
क्रान्तिकी कलरफूल तरकारी.

लेकिन ध्यान रहे 
रोगके  निदानमें
गफलत न हो .
मानवभक्षी इस नगरकी
नागचूड है राक्षसी,
दंगे भड़क उठते हैं
चमकती तलवारें
छूरे, अस्त्रा,
सुलगते काकडे,
बल्ब एसीड
या पेट्रोल,डीज़ल या मिट्टीके तेलके.
अगर इतने ही होते
हथियार
तो
તો પહોંચી  વળત
कोम्बिंग ओपरेशनके एकाध नाटकसे.
ભીનું સંકેલાઇ જાત
लेकिन
मानवभक्षी इस नगरकी
नागचूड नहीं है कम
मानवभक्षी इस नगरकी.  
बीचोंबीच खड़ी है यह
सीदी सैयदकी जाली
या झूलते मीनार 
दरवाजा बाहर हठीसींगके देहरे 
या हनुमान किसी अखाड़ेके
भावविहीन जगन्नाथ
या अपाहिज राम-जानकी
वे तो हैं सिर्फ मिट्टीके पूतले 
कठपुतली जैसे 
बिलकुल बेचारे!
उनकी ड़ोर है वहाँ
पाटनगरमें.
एयरकंडीशंड महालयोंमें
खेलती,खाती,आलोटटी
दीमकके पेटमें
फ़ाइल जाती नहीं हैं
हमारे धन,धान,खून-पसीना
सबकुछ स्वाहा हो जाता है.
उन्हें कोई तकरार  नहीं स्काईस्क्रेपर,
फाइव स्टार
मारुति,हौंडा और जम्बो जेटसे
उनका प्रश्नार्थ है .
वहां झोंपड़पट्टीमें पनपते
विचारोंके नये प्राणवायुके खिलाफ.
प्रथम तो वह
प्राणवायुके सामने देखता है हैरतसे 
अस्तित्वके अननम पद्कारसे 
घबराहटमें कंपकंपाता है
सोचता है
मसल दिया था फिर भी
यह तिनका
क्यों बारबार उग आता है?

मानवभक्षी इस नगरकी
नागचूड है राक्षसी
तोड़ अगर तोड़ सकता है तो
पोल खोल अगर खोल सकता है तो .
सतह  तक जाना
हो सके तो.
डरना नहीँ
अन्धकारसे
विचित्र भय,
त्रासके डरसे.
तेरे खुनकी एक एक बूँदसे  
पैदा होंगे हजार हजार गोताखोर.



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