भगतसिंह !
बहुत कम
भगत देखे हैं
शेर जैसे ,
भगतसिंह
जैसे.
मेरा
गुज्जू पहचानता है एक नरसिंह भगतको
हाथमें
तंबूरा लेकर
वाल्मीकि
बस्तीमें जानेवाले
पागल-बावरे
गृहस्थको.
उसके
उपरान्त तो गुज्जू रसधारमें
बची है
खारापाटकी बंजर जमीन.
उसने रेतके
ढूवे पर रची है
अस्मिताकी
अट्टालिका.
भगतसिंह!
अस्पृश्यताके
अरण्य समान गुर्जर देशमें
भेड़िये
अलमस्त हो गए हैं,
सिंह
निर्वंश हुए है.
बचे खुचे
शेर बकरी बनकर
अहिंसक
लक्ष्मणरेखासे बद्ध हो चुके हैं.
घोले रहे
हैं सर्वधर्म समभावका अफीम और
चाट रहे
हैं बिनसाम्प्रदायिकताका झाग
भगतसिंह !
१९३२में
लार्ड इरवीनके साथ हुआ पेक्ट
दिल्लीके
दरबारियोंको पच गया है
लेकिन
जनताके अंग अंग पर उठ आये हैं
उसके फफोले.
आपरेशन
ब्लू स्टार,
भोपाल
त्रासदी
अरवल
मेसेकर
बोफोर्स-फेरफेक्स.
पता नहीँ ,
कौन करता है शासन?
अंकल शेम?
अंकल
शोर्गाचोव?
भगतसिंह !
अब
सर्वधर्म समभावकी सुनहरी चमक
फीकी पड़
चुकी है.
सर्वकोमवादका
खूनी रंग खुल रहा है
केसरी टोपी
, हरा जाकीट,
भूरी पगड़ी
, सफ़ेद कोट
एकदूसरेके
कपडे उतारकर
पूरे नग्न
हो चुके हैं.
होमो
सेपियन्सके आदमखोर पूर्वजकी
अदद
आवृत्ति समान !
भगतसिंह !
मूड़ीवादी
मरघटमें सैंकड़ो मानवघन्टे
जलकर भस्म
हो गए.
साम्प्रदायिक
दंगोंमें काफी निर्दोष खून
निरपराध बह
गया.
और कितनी
ही आग
झोंपडपट्टीयोंको छू गयी.
अन सच्ची दिशामें
कुछ मनुष्य-घन्टे
इस्तेमाल होंगे
तो व्यर्थ न जायेंगे
गर थोड़ा लहू बहता है तो व्यर्थ नहीँ हैं,
थोड़ी आग लगे तो वाजिब है .
डुक्करोंकी संसद पर एक विशेष बम
गीराना अब भी बाकी
है.
कान अब भी बहरे हैं.
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