जब छोटा था
भाईभांडुओंको अंदर अंदर लड़ाकर
खा जाता था रोटीका बड़ा हिस्सा.
एकलपेट
मैं ब्राह्मण था.
थोड़ा बड़ा हुआ
करने लगा बल प्रयोग.
धौल-धुलाई और मारामारीमें प्रवीण
निर्दयताका अवतार
लूटेरा
मैं क्षत्रिय था.
फिर और बड़ा हुआ
हथिया
लेना अन्योंका
सरलतासे,
सस्तेमें सीखा
हुआ
निपुण शोषणकी हरेक युक्ति-प्रयुक्तिमें.
शातिर
मैं
वैश्य था.
अब
हुआ परिपक्व
खड़ा
हुआ मैं मेरे ही पैरों पर
और
समजा स्वावलम्बनका सत्य
मेहनतकश
मैं
शुद्र बना
मैं
द्विज बना
मैं इन्सान बना.
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