जब उसका जन्म हुआ तब आकाशसे पुष्पवृष्टि
हुई न थी.
न ही उसकी माताने स्वप्नमें कोई ऐरावत देखा.
‘बालक बत्तीसलक्षणवाला होगा‘- अफ़सोस,ज्योतिषी ऐसा कह न पाये.
सयाना हुआ तब तक वह बापसे डरता रहा,
स्कूलमें सबकी मार खाता रहा
चायकी कितली पर वह बुनियादी तालीमके पाठ
सीखता रहा.
तगड़ा होनेके लिए उसे माँस खानेकी
आवश्यकता न रही.
बचपनमें उसे सुलाकर सुन्दर वस्त्रोंमें सज्ज एक
स्त्री किसी अनजान दिशामें चली गयी.
‘मेरी माँ धार्मिक थी ‘ वह दोस्तोंको बारबार
कहा करता था.
बिलाडी मिल बंद हुआ और उसका बाप
धोबीघाट जाती हुयी भीड़में चूपचाप घुल गया.
एक सुबह कांकरिया तालाबमें उसकी
सड़ी हुयी लाश तैरती थी.
रद्दी बीनती उसकी पत्नीकी कमाईसे
खरीदी बीड़ीके धुएँमें
उसकी बेकारीके दिन बुझ गए.
स्वयं महाभिनिष्क्रमण कर न पाया.
एक माज़म रातको ललाटपर काजलकाली डाईके दाग और खचाखच जेब लेकर
एक इसम आया.
उसकी बहूने नातरा किया था
भीगी आँखों पर सूखी जबान फेरकर
वह भठियार गली गया.
बाराहांडाकी चांप पेट भर कर खायी.
सूरज डूबते फूटपाथ
पर
अथादाता कूटता
उसकी आँखमें प्रवेश
किया तब
जिन्दगीने उसके उपर अगणित प्रयोग किये.
वह सत्यके थे या
असत्यके
किसीको कुछ पता
नहीं.
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