आज उन लोगोंने
शम्बूकके वंशजोको
हाथमें आरती थमाकर
दिल्ली दरवाजा पर खड़े कर
दिए है.
म्लेच्छोंका संहार करने
निकल पडी
रामजानकी रथयात्राका
स्वागत करनेके लिए.
पीछे
एकलव्यके वंशजोंका
चडीयारा
तीरभाला लिए खड़े पाँव है
शबरीके जूठे इतिहासकी
सुरक्षाके लिए.
तब भद्रकालीके मन्दिर पर
रेडीमेड थैले बेचता दाउद
मन्सूरी
टेलीविजन पर
पुत्रके फ़र्जका भाषण देते
रामको देखकर
अपने आपसे पूछता है :
“आरक्षणके दंगोंके
दरम्यान
रूईके गद्दोंके साथ
जिन्दा जलाए गये मेरे
बापका
तर्पण
मैं किस कद्र करूं?”
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