Thursday, December 31, 2015

शम्बूक













छोटीसी एक चाल,
मजद्र्र्र बस्ती.
मच्छरोंसे भी बहुत
जिन्दगी है सस्ती...1

हब्शी जैसा रंग  लिए
जन्मा शम्बूक्रराय,
खोली और  अँधेरा  
बहुत जगमगाय ...2

टी.बी. हुआ बापका   
मिलमें पड़ता देह ,
पर्बत कैसे कर्ज पर
सुलगी उसकी चेह ...3

रेलगाड़ीका कोलसा
माता चुनने जाय ,
बच्चा पढ़ले, आसमें
आधी भूखी सो जाय ...4

गाय बैल बांधे जहां
ऐसा था वह स्कूल 
मेहता खींचे कान  
शम्बूक खोजे ज्ञान  ...5

पंछी एक आकासमें  
उड़ता देखा दूर ,
उतना  ऊँचा उड़ना 
मनमें बांधी गाँठ ...6

स्नातककी पदवी मिली,
ऐसे में एक दिन
रोती माँकी आँखमें 
पलभर थमते मेह...7

माँके छू कर पांव वह 
इन्टरव्यू देता रहा .
प्रोफेसरकी  नौकरी
पायी लेकिन देरसे....8

बहुत बड़ी कोलेज है
जिसके बहुत बड़े दरवाजे  ,
छात्रोंके दिल जीत कर
हो बैठा वह राजे ...9

विध्याके वर्तुलमें  
चौकोर उसकी  धाक ,
शूद्रताके स्पर्शसे
सरस्वती हुई पाक ...10

लेकिन काल शम्बूकका   
आता कठिन विशेष  ,
साँप सजीवन हो उठे  
जो थे आज तक अवशेष ...11

दरवाजा कोलेजका   
दोपहर हुई भीड़,
क्या है पूछते लोगके
चेहरे पर थी चीड़....12

इतनेमें शम्बूकका
वहाँ हुआ आगमन,
‘वह बी.सी. ढेड़ चला’ 
किसीके ऐसे वचन  ...13

क्या मेधावी विभूति!’  
घबरा   बोला एक.
स्साले ढपोरसंख
टोला   टूट पड़ा... 14

मेरीट हमारी माँ और
एफिसीयन्सी बाप
आरक्षण है विघ्न
भीषण उसका शाप  ...15

शम्बूकका  आफ़िस रहा
केन्द्र, शब्दबाण बौछार
भीड़ तानती तंग बहुत
दीमाग नामकी डोर ..16

आग लगी शम्बूकको
आँख उठा रंग  लाल ,
कैसे  है यह जातपांत  
जिसके  चलते त्रास  ...17

घरकी ओर शाम ढले 
कदम उठे चुपचाप
नीन्द नहीँ है आँखमें
अतीतके संताप...18

चालके चौक बीच
शम्बूक चला जाय  ,
धूलके ढेर पर 
फिरसे बैठा राय  ...19

कहाँ था ? क्या हो गया ?
खायी क्यों यह चोट ?
समस्याका एक नया
विश्व खुला विराट ...20

उलझन रहती रातदिन
हाजिर है कोलेज
सब्जेक्ट सीखाना है उसे
कास्टीजम इन विलेज..21

क्लासमे एक दिन  
हो गयी भारी भूल ,
दलित बंधु हो गया
उसकी औरोंको लगी शूल ...22

बन्द करो यह राजनीति
बोल उठे तीव्र सूर ,
जैसे डूबो देंगे शम्बूकको 
आयी जैसे बाढ़ ...23

भारी होहल्ला मचा
तानोंकी हुई मार 
क्षुब्ध शम्बूक हुआ
पीड़ा अपरंपार...24

मध्यरात्रिका फोन
करता गाली-गलौच
ढेड़ा, सर पर तू चढ़ा   
मरना है क्या,सोच  ?..25

कंकर जाते फैंक
या तो पीछेसे टपली दाँव
प्रोफेसरका दिल 
होता गहरा घाव ...26

स्टाफ रूम, गहरा मौन  
और पीछे कानाफूसी,
अनजान त्रासदी
रातें लेती करवट ...27


देर रात एकदा 
नीन्द हुयी बेचैन  ,
तपेदिक हुए बापकी
स्मृति सारी रैन ...28

शून्यमनस्क चित्तमें  
काल हुआ स्थगित
सहरा जैसे कन्ठमें 
सिसकीयाँ, संगीत...29

झीना झीना दर्द 
सीनेमें जो उठा ,
देह विद्याव्यासंगीकी
जैसे ठण्डा बर्फ ...30

अलविदा , हे दुनिया !
कह कर छोडी साँस.
मृत्युकी एक फूँकसे
सब संताप तमाम   ....31



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